तिलक |
हिन्दू धर्म में तिलक-धारण एक आवश्यक धार्मिक कृत्य माना गया है। तिलक के बिना ब्राह्मण को तुच्छ माना जाता है। दक्षिण भारत में तिलक आज भी अपना विशेष स्थान बनाए हुए है। भारतीय परम्परानुसार तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है। अतिथियों को तिलक लगाकर विदा कस्ते हैं। शुभ यात्रा पर जाते समय शुभकामनाएँ प्रकट करने के लिए तिलक लगाने की प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
जब हम मस्तिष्क से आवश्यकता से अधिक काम लेते हैं, तब ज्ञान तन्तुओं का विचारक केन्द्र भृकुटि भी ललाट के मध्य भाग में पीडा उत्पन्न जाती है, ठीक उस स्थान जहाँ तिलक, त्रिपुण्ड लगाते हैं। चन्दन का तिलक ज्ञान तन्तुओँ को शीतलता प्रदान करता है। जो प्रतिदिन प्रात:काल स्नान के पश्चात् चन्दन का तिलक लगाता है, उसे सिरदर्द की शिकायत नहीं होती: इस तथ्य को डॉक्टर्स एवं वैद्य हकीम भी स्वीकार करते हैं।
एक प्रयोग
यदि हम आँखे बंद करके बैठ जाएँ और कोई व्यक्ति हमारे भ्रू-मध्य के एकदम निकट ललाट की ओर तर्जनी उँगली ले जाए । तो वहाँ हमें कुछ विचित्र अनुभव होगा । यही तृतीय नेत्र की प्रतीति है। इस संवेदना को हम अपनी ऊँगली भृकुटि-मध्य लाकर भी अनुभव कर सकता है। इसलिए इस केन्द्र पर जब तिलक अथवा टीका लगाया जाता है, तो उससे आज्ञाचक्र को नियमित रुप से उत्तेजना मिलती रहती है। इससे सजग रुप में हम भले ही उससे जागरण के प्रति अनभिज्ञ रहें, पर अनावरण का वह क्रम हनवरत चलता रहता है। तिलक का तत्वदर्शन अपने आप में अनेंको प्रेरणाएँ सँजोएं हुए है।
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